हे ईश्वर प्रार्थना है मेरी,
आस्था की घाट से कहीं दूर, आराधना है मेरी ...
इस मूक दुनिया को एक आवाज़ मिल जाये,
मनुष्य को मानवता का आभास मिल जाये ...
मुझसे कोसों दूर बस्ता है एक देश जो जल रहा है,
रूस की तोपों के तले, टूट रहा है, बिखर रहा है।
न ज़ुबान एक है, न धर्म, न आस्था,
न जाने फिर क्यों सुन पाता हूँ उनकी चीखें, उनकी दास्तान?
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शासन बरक़रार।
बंदिशों के दड़बे, ज़ंजीरों की दीवार।
लालच की भूख फिर भी जारी,
साथ ही पलती है भुखमरी, बीमारी!
थम, ठहर, रुक, एक षंड तो विचार ले,
मौका अभी भी है त्रुटियां सुधर ले!
वरना ये जग इंसानियत का मकबरा बन जायेगा।
महायोग होगा ये माना, पर १४४ वर्ष में फिर आजायेगा।
पर वो योग कब आएगा..
जब इंसान इंसान को समझ पायेगा...
जब इंसान इंसान को समझ पायेगा...