ख़बर स्वाद के भेद का कभी किया है ग़ौर?
नहीं किया तो देख लो ये नई ख़बर का दौर!
नए दौर में देखो कितने बावर्ची कलछी फेर रहे हैं,
पढ़े-लिखे-अनपढ़ सबको यह घेर रहे हैं ।
लाला भृकुटिलाल तो इस व्यापार में फूले,
ज्ञान का विक्रय करते करते उसको पढ़ना भूले,
नित्य लोगों को ख़बर के चटकारे देते,
करते हैं दान, आदान में कुछ न लेते ।
इनसे बड़े भी ज्ञानी हैं ये पंडित हरियानन्द।
पंडित हरियानन्द भूख को भाँप रहे हैं,
समय की माँग देख मिथ्या ही छाप रहे हैं!
मिथ्या-सत्य में फिर भला कैसा हैं ये भेद?
यह दक़ियानूसी सोच है, जैसे काला और सफ़ेद!
काला और सफ़ेद तो भैया रहा न अक्षर,
हरी पीली स्लेट से सब अब हुए साक्षर।
ज्ञान विक्रय की क्या तीव्रता अजब ग़ज़ब यह दौर,
जल्द पता कुछ चल सके यही लगी है दौड़।
इसी दौड़ में तो हरित भी दौड़े,
क्या होगा आगे सोचें दिमाग़ी घोड़े।
मास्टर स्मिथ आनंद की मगर अलग है सोच,
जग में असत्य कि खड़ी इनकी बड़ी है खोज।
भैया खड़ी है खोज इन्होंने ऐसा खोजा उत्तर,
पृथ्वी की गोलाई पर ही हुए निरुत्तर।
निरुत्तर खड़े सबको झूठा आँक रहे हैं।
विज्ञान की पीठ को छोड़ असत्य में झांक रहे हैं।
मगर इस ही दौड़ में धनानंद को बड़ा आनंद,
इनका कारोबार है फैलाना झूठे छंद।
झूठे छंद इनके जब जब हैं फैले,
नोट के द्वार खड़े हैं इनके झोले थैले।
धनानंद घर बैठे सिक्के तोल रहे हैं।
वहीं भृकुटी लाल ज्ञान के चक्षु खोल रहे हैं।
हाँ! चख लो भूख मिटाने का नया ये मंतर,
जीभ पर होगा स्वाद मिटेगा मिथ्या-सत्य का अंतर।
घिसीपिटी किताबी बातें भूल सकोगे,
बात-बात पर नुस्ख़े सौ तुम बोल सकोगे।