क्रांति की चाल, छाती विशाल।
उन्नति के पथ पर कदम ताल।
अचंभित कर, दृश्य ने थाम लिया।
विप्रीत दिशा में घूमती थी,
मेरे हाथों में बंधी हुई,
घड़ी मुझे वो खीचती थी।
जब पास बढ़ा जाना मैंने,
लफ्जों से कुछ वो बोलती थी।
निर्माण-यात्रा के पन्ने, मेरे समक्ष रख खोलती थी।
लघु उद्योगों से आई हूं!
कठिनाई मेरी पहचानोगे?
गुलामी के अंश जो व्यापक हैं…
..स्वीकृत हैं! खुद संस्थापक हैं!
क्या उन्हे हटा तुम पाओगे?
गुलाम राज्य, मन में स्वराज्य,
एक आज़ाद सोच का जन्म हुआ।
कुटिल उद्योगों से आया था,
चरखा आजादी चिह्न बना।
साधारण वेश, अंतर्मन निवेश,
उद्योग जगत में क्रांति थी।
अर्ध-शतक उपरांत इस क्रांति के,
हमने फिर इसका ध्यान किया!
MSME कानून प्रदान किया!
कुटिल, लघु और मध्यम वर्गों में,
निवेश विक्रय देख, कर बाट किया।
पर बाट मिटा सा रहता है,
अक्सर कानून नही कुछ कहता है।
इस समस्या से भी तो फिर,
कुटिल-लघु वर्ग ही सहता है।
संदर्भ सहित, अब चलो स्वयं,
अपनी गाथा बतलाती हूं।
नित्य उद्योग के जीवन की,
कठिनाई को दर्शाती हूं।
निर्माण काल से भी पहले,
हिस्सों की कुछ पड़ताल हुई,
पहचान लिया उन हिस्सों को,
कुछ दूर देश में रहते थे।
निर्यात से पहले आयात की बारी थी,
पर उससे पहले जंग अलग ही जारी थी,
दस्तावेजों के जंजालों से लड़ने की अब तैयारी थी।
कंपनी संगठित! आयात हुआ,
घड़ी बनी और निर्यात हुआ,
पर इसके भीतर भी गाथा है।
नित्य उद्योग के जीवन में,
कठिनाई है, अभिलाषा है।
श्रमिक कानून भी एक श्रम है,
इसमें कल्याण का एक भ्रम है।
पर्यावरण संरक्षण की एवज में,
"बाबू" जी सेवा मांग रहे..
प्रदूषण बढ़ता जाता है, न जाने कैसा स्वांग करें!
फिर ज़मीन भी एक समस्या है,
"लीजहोल्ड" है, लाल फीताशाही का अड्डा है।
आग विपदा का कानून तो फिर,
जग माप ही समझ न पाया है..
जोखिम की अस्थिर प्रकृति को,
न जाने क्यों ठुकराया है।
समता का कानून लिए, समानता को क्यों भूल चले?
कानून अंत है या, एक माध्यम है, पहले इसका संज्ञान करें!
उल्टे घूमे इन काटो को,
आओ सीधा कर बढ़ते हैं।
उन्नति लक्ष्य प्रधान लिए,
सर्वकल्याण की नीव को रखते हैं।